वॉयस ऑफ ए टू जेड न्यूज:-
लखनऊ :- अब विकास प्राधिकरणों से रियल एस्टेट परियोजनाओं के मानचित्र स्वीकृत होने से तीन माह की अवधि में डेवलपर को रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथारिटी (रेरा) में भी पंजीकरण कराना होगा। उसे स्वीकृत नक्शे की कापी भी अनिवार्य रूप से रेरा में जमा करनी होगी ताकि रेरा परियोजनाओं के पंजीकरण की प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से ट्रैक कर सके।
दरअसल, रेरा के गठन के बावजूद डेवलपर द्वारा आवंटियों के शोषण की लगातार शिकायतें मिल रहीं हैं। शासन के संज्ञान में आया है कि रेरा में परियोजना का पंजीकरण कराए बिना ही बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से फ्लैट बनाए जा रहे हैं। ऐसी आवासीय परियोजनाओं में बनाए गए फ्लैट लेने वाले आवंटियों को कानूनी तौर डेवलपर की मनमानी से राहत नहीं मिल पाती।
तमाम नियम-कानून से बचने के लिए ही डेवलपर रेरा में पंजीकरण नहीं कराते हैं। यही कारण है कि प्रदेश में रेरा में पंजीकृत परियोजनाएं जहां चार हजार से भी कम हैं वहीं देशभर में लगभग डेढ़ लाख हैं। ऐसे में आवंटियों के हितों को सुनिश्चित करने के लिए आवासीय परियोजनाओं का हरहाल में रेरा में पंजीकरण सुनिश्चित करने के संबंध में मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने शुक्रवार को बैठक की।
मुख्य सचिव ने बैठक कर लंबित आवासीय, व्यावसायिक एवं औद्योगिक परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा की। परियोजनाओं के क्रियान्वयन में आ रही समस्याओं के निस्तारण के लिए हुई बैठक में मुख्य सचिव ने कहा कि स्वीकृत नक्शे की प्रति मिलने से रेरा द्वारा परियोजनाओं की गुणवत्ता व समयबद्धता को सुनिश्चित किया जा सकेगा। उन्होंने निर्देश दिए कि मानचित्र स्वीकृति पत्र (सैंक्शन लेटर) में यह भी उल्लेख किया जाए कि डेवलपर को तीन माह के भीतर परियोजना को रेरा में पंजीकृत करवाकर प्राधिकरण को सूचित करना होगा।
एग्रीमेंट फार सेल को पंजीकृत करने और रजिस्ट्री की व्यवस्था आनलाइन होनी चाहिए। साथ ही फ्लैट की सेल डीड में रेरा पंजीकरण संख्या को अंकित करना अनिवार्य किया जाए, ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके। फ्लैट की रजिस्ट्री में रेरा पंजीकरण नंबर की अनिवार्यता होने पर डेवलपर को अपनी परियोजना को रेरा में पंजीकृत कराना ही होगा नहीं तो रजिस्ट्री न होने की दशा में कोई फ्लैट लेगा ही नहीं।